मै एक फूल हूँ गुलशन का,
जिसे सब लोग सजा देते हैं,
हम खुद ही टूट कर भी,
दूसरो को मजा देते हैं,
हमे तोड़ कर लोग गले का हर बना लेते हैं,
हमे तोड़ते हैं और निशान ए प्यार बना देते हैं,
हम ही हैं जो कभी कभी गुलशन,
जिसे सब लोग सजा देते हैं,
हम खुद ही टूट कर भी,
दूसरो को मजा देते हैं,
हमे तोड़ कर लोग गले का हर बना लेते हैं,
हमे तोड़ते हैं और निशान ए प्यार बना देते हैं,
हम ही हैं जो कभी कभी गुलशन,
भी महका देते हैं,
लोग कभी कभी हमे यादों मै बसा लेते हैं ,
जरा सुनो मुझे तोड़ लेने वाले,
रहम करना मेरे उस माली पर भी ,
जो हमे जिन्दगी देने के लिए ,
अपने उँगलियों मै कांटे चुभा लेते हैं ,
मुझे शिकायत है यह हर आने वाले से ,
गुलशन से तोड़ गुलदस्ते क्यूँ बना देते हैं,
लोग कभी कभी हमे यादों मै बसा लेते हैं ,
जरा सुनो मुझे तोड़ लेने वाले,
रहम करना मेरे उस माली पर भी ,
जो हमे जिन्दगी देने के लिए ,
अपने उँगलियों मै कांटे चुभा लेते हैं ,
मुझे शिकायत है यह हर आने वाले से ,
गुलशन से तोड़ गुलदस्ते क्यूँ बना देते हैं,
आता है जब घर मै कोई मेहमान ,
वे गुलदस्ते थमा देते हैं,
पूछता हूँ मै जाते हुए उस मेहमान से ,
बताइए कि मेरी खता क्या है ??
जाते हुए किसी के घर से
बताइए कि मेरी खता क्या है ??
जाते हुए किसी के घर से
क्यूँ हम फूलों को ही पैरों से दबा देते हैं ???
[…] फूल गुलशन का मै एक फूल हूँ गुलशन का, जिसे सब […]
very nice poem rajeev ji
very nice
Thnx a lot aditya bhai
nice