चिराग एक कब्र का

14 03 2021

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मै  आज  खडा  हूँ  जिस  कब्र  पर,
वह   कब्र  किसी    देश  के   सिपाही  का  है,
यह  एक  तोहफा  गैरों  के  तबाही  का  है,
यह  जो  चिराग  इसके  पास  जल  रहा  है
 आते  जाते  हर  रूह  को   ये  बता  रहा  है,
यह  मजार  भी  किसी  महबूब  के  माही    का  है,

 कह  रहा   है  यह  पास  आने  वाले    हर  राहगीर  से,
कभी  भी  मेरी  याद  मै  आंसू  ना  बहाना,
गर  हो  सके  तो 
 देश  के  वास्ते  एक  कतरा  खून  बहा   जाना,
कहता  है  इससे  बढ़  के   क्या  कुछ  और  होता  है,
 अरे  हर   आदमी  ही  तो  देश  का  सिरमौर  होता  है |





फूल गुलशन का

4 11 2009

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मै  एक  फूल  हूँ  गुलशन  का,
 जिसे  सब   लोग  सजा  देते  हैं,
हम  खुद   ही   टूट  कर  भी,  
दूसरो  को  मजा  देते  हैं,
हमे  तोड़  कर  लोग  गले  का  हर  बना  लेते  हैं,  
हमे  तोड़ते  हैं  और  निशान  ए  प्यार  बना  देते  हैं,
हम  ही  हैं  जो  कभी  कभी  गुलशन,
 भी  महका  देते  हैं,
लोग  कभी  कभी  हमे  यादों  मै  बसा  लेते  हैं ,
जरा  सुनो  मुझे  तोड़   लेने  वाले,  
रहम  करना  मेरे  उस   माली  पर  भी  ,
जो  हमे   जिन्दगी  देने  के  लिए ,
 अपने  उँगलियों  मै   कांटे  चुभा  लेते  हैं ,
मुझे  शिकायत  है  यह  हर  आने  वाले  से ,
 गुलशन   से  तोड़  गुलदस्ते  क्यूँ  बना  देते   हैं,

 आता  है  जब  घर  मै  कोई  मेहमान  ,
वे  गुलदस्ते  थमा  देते  हैं,

 पूछता  हूँ  मै  जाते  हुए  उस  मेहमान  से ,
बताइए  कि  मेरी  खता  क्या  है  ??
जाते  हुए  किसी  के  घर  से 
 क्यूँ  हम  फूलों  को  ही  पैरों  से  दबा  देते  हैं ???




कल और आज

4 11 2009

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कल  मै  सब के   पास  जाता  था   
 कोई  तो   अपना   बनाएगा  मुझे,  
यही  सोच   साथ  साथ  जाता  था,
जब  होती  थी  नही  फूलों  से  दोस्ती,  
तब  मै  काटों  के  पास  जाता  था,  
कल  मै  अरमानो   की  सीढ़ी  बनाता  था,  
पर  ऍन  मौके  पर  वो  भी  टूट  जाता  था,  
कल  मै  गिरे  हुए  को   उठाता  था,
 पर   वह  भी  मुझे  बैशाखी  थमता  था,
दूसरो    को  हँसाने  के   लिए,    
कल  मै  अपना  गम  छिपाता   था,   
इस  तरह    से   मै  अपना  कल  बिताता  था,  

पर  आज

मै  जब  जब   अकेला  रहना  चाहता  हूँ,  
 ना  जाने    सब  लोग  क्यूँ  मेरे  पास  आते  हैं, 
 मै  जब  कहता  मेरा  अपना  नही  कोई,
आखिर  क्यूँ  सब  लोग  मुझे  अपना  बनाते  हैं,
मैंने  है  कर  ली  आज  काटों  से  दोस्ती , 
तब  फुल  भी  टूटकर  क़दमों  मै   बिखर  जाते  हैं,
आज  मै  गिरना  चाहता  हूँ   फिर   सीढियों  से
तो  सब  लोग  मुझे  क्यूँ  अपने  पलकों  पे  बिठाते  हैं,
आज  चाहता  हूँ  कि  मै  खूब  रोऊँ, 
 हँसाने  के  लिए  फिर  क्यूँ  मुझे  गुदगुदाते  हैं,

 आज   जब   चाहता  हूँ  मै   बैशाखी  का  सहारा,  
तो   फिर  लोग  क्यूँ  मेरे  कंधे  से  कन्धा  मिलते  हैं
पर  एक   बात  है  , जो  कल  यादों   मै  आते  थे   
 वे  कल   भी  रुलाते  थे  और  अब  भी   रुलाते  हैं
पर  अकसर  होता     है 
मेरे  साथ  ही  ऐसा  क्यूँ?

 
जब  मै  अपना  आज  बिताता  हूँ,
  तो  लोग  अपना  कल  बिताते  हैं .





चिराग एक कब्र का

4 11 2009

1229437985

मै  आज  खडा  हूँ  जिस  कब्र  पर  
वह   कब्र  किसी    देश  के   सिपाही  का  है  
यह  एक  तोहफा  गैरों  के  तबाही  का  है
यह  जो  चिराग  इसके  पास  जल  रहा  है
 आते  जाते  हर  रूह  को   ये  बता  रहा  है  
यह  मजार  भी  किसी  महबूब  के  माही    का  है

 कह  रहा   है  यह  पास  आने  वाले    हर  राहगीर  से
कभी  भी  मेरी  याद  मै  आंसू  ना  बहाना  
गर  हो  सके  तो  देश  के  वास्ते  एक  कतरा  खून  बहा   जाना
कहता  है  इससे  बढ़  के   क्या  कुछ  और  होता  है
 अरे  हर   आदमी  ही  तो  देश  का  सिरमौर  होता  है




मै क्यूँ किसी को अपना नही बनाता ??

23 10 2009

tropical_sunsetमै  किसी  को   कभी  अपना  नही  बनाता
सब  पूछते   हैं  पर  मै  बता  नही  पता

सबसे  पहले  मैने  मिटटी  का  घरोंदा  बनाया  था
उसे  मैने  बगीचे  के  फूलों  से  सजाया  था 
तभी  कुछ  देर  बाद  ही  बरसात  हो  गयी  थी 
मेरी  मिटटी  की  गुडिया  बर्बाद  हो  गयी  थी  

फिर  मैने  लकडी  का  एक  मंदिर  बनाया  था 
मैने  उसमे  घी  का  दीपक  जलाया  था  
तभी  हवा  के  झोंके  से  उसमे  आग  लग  गयी  थी
मेरे   अरमानो  की  मंदिर   जलकर  खाक  हो   गयी  थी 

पर  फिर  भी  मैने  कभी  भी  हार  नही   मानी
इस  बार  मैने  एक  बडी  बात  ठान  ली 

मैने  सफ़र  के  एक  राहगीर  को  साथी  बनाया 
उसने  मुझे  अपनी  बारात  में  बुलाया  
वहा  पहुंच  कर  मै  फिर  हाथ  मल  रहा  था 
बारात  के  जगह  पर   उसका  जनाजा  निकल  रहा  था  

क्या  आप  फिर  भी  कहेंगे  कि  मुझे  अपना  बनाइए
मै  कहता  हूँ  इसलिए  मुझे  अकेला  छोड़  जाइये  
मै  इसलिए  किसी  को  कभी  अपना  नही  बनाता 
और  सफ़र  पर  मै  अपने  अकेला  ही  निकल  जाता  ——————–





दुश्मन की तरह

21 10 2009

katilहम  एक   फूल  हैं   नाज  ऐ गुलशन   की  तरह    

जो  महकते  हैं  आँगन  को    भी  उपवन  की  तरह

कहते  हैं  सब  की  मै  तेरा  होता  ही   कौन   हूँ
 
हम  बसाते  हैं  उन्हें   दिल  मै  धड़कन  की  तरह 

जब  आता  है  कोई  , तो  बहार   आ  जाती  है  जिन्दगी  मै 

पर   बीत  जाती  है  वह  भी  बचपन  की  तरह 
किसी  ने  फेंका  था  लकडी  समझ  कर  सड़कों  पर 

किस  ने  उठा   माथे  से   लगाया   था   चन्दन  की  तरह

कांपते  देखा  किसी   ने  मुझे  तो  उढ़ाया     चादर 

कोई  आया  तो  उसे  लपेट  गया  कफ़न  की  तरह 
किसी  ने  पूछा  कालिख  क्यूँ  लगाया   है  अपने  चेहरे   पर 

मेने  तो  आँखों  मै  लगाया  था   उसे  अंजन  की  तरह 

लोग  कहते  हैं  की  हमे  आदमी  की  पहचान  है  नही 

हम  हर  चेहरे  को  देखते  हैं   दर्पण  की  तरह 

हम  से    तो  ना   जाने  लोग   क्यूँ  लड़ते  हैं  रोज 

हम  भूल  जाते     हैं   छोटी  सी  अनबन    की  तरह 

 

जरा  मेरे  सीने  पर  निशान  ‘ ऐ   खंजर   तो   देखो 
 
ये  आपसे  पूछती  हैं  शायद   ‘

उस दिन  क्यूँ  मारा  था  आपने  राजीव  को  दुश्मन  की  तरह …  
 




मेरा बचपन लौटा दे

14 06 2009

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लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
खुशियों का वो छोटा आँगन , वो प्रेम का उपवन लौटा दे .
लौटाना हे आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
हर दिन होली हर रात दिवाली , दिन वो बचपन लौटा दे.
याद है मुझे ,
दादा जी के साथ बगीचे में वो जाना ,
पेड़ों के झुरमुट में जाकर छिप जाना ,
दादा जी का मुझको अपने पास बुलाना ,
और मेरा उनके अचकन में जा कर छिप जाना ,
लौटाना है आज मुझे तो दादा जी का वो अचकन लौटा दे ,
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
ख्वाबों का संसार मुझे कोई लौटा दे ,
माँ कि थप्पड़ का प्यार मुझे कोई लौटा दे ,
पहली बार देखा था, जिसे चौबारे पर ,
आज वो परी अनजान मुझे कोई लौटा दे
उसकी शर्म से लाल गाल ,और झुकी हुई पलकें ,
अब भी करती परेशान मुझे कोई लौटा दे ,
पहली बार जवानी को देखा था मेने जिस दरपन में ,
हो सके तो एक बार वही दरपन मुझको लौटा दे ,
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
चौबारे का निश्छल प्यार और वो प्रेम का उपवन लौटा दे
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,





महिला सशक्तिकरण

14 06 2009

आज शहर के चौराहे पर
एक सभा हो रही थी
इस सभा का सञ्चालन
एक महिला कर रही थी

उसने कहा सुनिए हमने आज आम सहमति है बनाई
महिलाओं को सशक्त बनाने की आज है जरूरत आई ,
फिर उन्होंने एक सज्जन को पुकारा
जिन्होंने वहा बैठे सरे श्रोताओं को ललकारा
उन्होंने कहा,
हमें हर साल
महिला सशक्तिकरण वर्ष मनाना चाहिए
आज की नारी को उसका हक़ दिलाना चाहिए
तभी किसी श्रोता ने कहा
जरा मेरे प्रश्न का जवाब दे जाइये
एक बार जरा मुझे भी ये बताइए
कल रात को आपने कौन सा पर्व मनाया था ?
क्यूँ आप सब ने मिल कर अपनी बहू को जलाया था ?