दुश्मन की तरह

21 10 2009

katilहम  एक   फूल  हैं   नाज  ऐ गुलशन   की  तरह    

जो  महकते  हैं  आँगन  को    भी  उपवन  की  तरह

कहते  हैं  सब  की  मै  तेरा  होता  ही   कौन   हूँ
 
हम  बसाते  हैं  उन्हें   दिल  मै  धड़कन  की  तरह 

जब  आता  है  कोई  , तो  बहार   आ  जाती  है  जिन्दगी  मै 

पर   बीत  जाती  है  वह  भी  बचपन  की  तरह 
किसी  ने  फेंका  था  लकडी  समझ  कर  सड़कों  पर 

किस  ने  उठा   माथे  से   लगाया   था   चन्दन  की  तरह

कांपते  देखा  किसी   ने  मुझे  तो  उढ़ाया     चादर 

कोई  आया  तो  उसे  लपेट  गया  कफ़न  की  तरह 
किसी  ने  पूछा  कालिख  क्यूँ  लगाया   है  अपने  चेहरे   पर 

मेने  तो  आँखों  मै  लगाया  था   उसे  अंजन  की  तरह 

लोग  कहते  हैं  की  हमे  आदमी  की  पहचान  है  नही 

हम  हर  चेहरे  को  देखते  हैं   दर्पण  की  तरह 

हम  से    तो  ना   जाने  लोग   क्यूँ  लड़ते  हैं  रोज 

हम  भूल  जाते     हैं   छोटी  सी  अनबन    की  तरह 

 

जरा  मेरे  सीने  पर  निशान  ‘ ऐ   खंजर   तो   देखो 
 
ये  आपसे  पूछती  हैं  शायद   ‘

उस दिन  क्यूँ  मारा  था  आपने  राजीव  को  दुश्मन  की  तरह …  
 

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8 responses

22 10 2009
lalit sharma

आप का स्वागत करते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित हूँ कि आपने ब्लॉग जगत मेंपदार्पण किया है. आप ब्लॉग जगत को अपने सार्थक लेखन कार्य से आलोकित करेंगे. इसी आशा के साथ आपको बधाई.
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं,
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22 10 2009
Anamika

मेने तो आँखों मै लगाया था उसे अंजन की तरह

लोग कहते हैं की हमे आदमी की पहचान है नही

हम हर चेहरे को देखते हैं दर्पण की तरह

dil ki saafgoyi pasand aayi.

27 10 2009
rajeevkumarpandey

thnks a lot anmika ji
ese hi hosla aafjaiyi karte rhiye to likhne me mja aayega

23 10 2009
pawanswarnkar

bahut khoob sirji

27 10 2009
rajeevkumarpandey

thnks for ur valuable rply

ese hi hosla dete rhiye

17 01 2010
anuranjan pandey

wow

what a poetry!!!!!!!!!!!!!!!!!!

9 11 2010
shivanand yadav

wah kya likhte hai jnab.aapko to writer banna chahihe tha.

20 11 2010
rajeevkumarpandey

Thnx a lot ji

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