हम एक फूल हैं नाज ऐ गुलशन की तरह
जो महकते हैं आँगन को भी उपवन की तरह
कहते हैं सब की मै तेरा होता ही कौन हूँ
हम बसाते हैं उन्हें दिल मै धड़कन की तरह
जब आता है कोई , तो बहार आ जाती है जिन्दगी मै
पर बीत जाती है वह भी बचपन की तरह
किसी ने फेंका था लकडी समझ कर सड़कों पर
किस ने उठा माथे से लगाया था चन्दन की तरह
कांपते देखा किसी ने मुझे तो उढ़ाया चादर
कोई आया तो उसे लपेट गया कफ़न की तरह
किसी ने पूछा कालिख क्यूँ लगाया है अपने चेहरे पर
मेने तो आँखों मै लगाया था उसे अंजन की तरह
लोग कहते हैं की हमे आदमी की पहचान है नही
हम हर चेहरे को देखते हैं दर्पण की तरह
हम से तो ना जाने लोग क्यूँ लड़ते हैं रोज
हम भूल जाते हैं छोटी सी अनबन की तरह
जरा मेरे सीने पर निशान ‘ ऐ खंजर तो देखो
ये आपसे पूछती हैं शायद ‘
आप का स्वागत करते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित हूँ कि आपने ब्लॉग जगत मेंपदार्पण किया है. आप ब्लॉग जगत को अपने सार्थक लेखन कार्य से आलोकित करेंगे. इसी आशा के साथ आपको बधाई.
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मेने तो आँखों मै लगाया था उसे अंजन की तरह
लोग कहते हैं की हमे आदमी की पहचान है नही
हम हर चेहरे को देखते हैं दर्पण की तरह
dil ki saafgoyi pasand aayi.
thnks a lot anmika ji
ese hi hosla aafjaiyi karte rhiye to likhne me mja aayega
bahut khoob sirji
thnks for ur valuable rply
ese hi hosla dete rhiye
wow
what a poetry!!!!!!!!!!!!!!!!!!
wah kya likhte hai jnab.aapko to writer banna chahihe tha.
Thnx a lot ji