कौड़ियों के मोल

12 05 2011

माना कि लादेन को मारा अमेरिका ने पाकिस्तान में ,
पर देखिये पाकिस्तान के नेता अपनों के साथ वफा तो कर रहें हैं ..

गौर इस बात पे  करने की जरुरत है की हमे अपनों से ही डर है ,
हमे बेवजह ही अमरीका की बहादुरी पे ख़ुशी  से मर रहें हैं..

जो पाकिस्तान में घुस के उसकी सल्तनत का मजाक  उड़ा सकता है ,
वो कुछ भी कर सकता है हमारे देश में,
क्यूंकि यहाँ के नेता देखिये कौड़ियों के मोल बिक रहें हैं …





बेवफा कुते :

12 05 2011

पाकिस्तान को हम देते हैं गाली पर एक बात है उनमे
कि उनके यहाँ आज भी आपस में करते हैं वफा “कुते “,

क्यूँ  अब सांप भी इन्सान के आस्तीन में आने से डरने लगा है ,
और सुरक्षित घर लगने लगे  हैं उन्हें अब कुकुरमुते ,

कुते भी डर रहें हैं आज इंसानों से वफा करने से अब ,
जब से देश की हिफाजत करने वाले इन्सान**  हो गये हैं “बेवफा कुते “,

क्यूँ फेंके जाते हैं हम किसी नेता के ऊपर ,
 बड़े अफ़सोस और  शर्म से  कह रहें थे   आपस में कुछ  जूते ..

** तथाकथित इन्सान





जीने का दिल करता नही पर मौत है कि आती नही ,

9 11 2009

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यादों  का   सहारा  कल  तक  जीने  के   लिए  काफी  था

अब   आँखों   को   नींद  है  कि  आती  नही

अब  जब  गुजरता  हूँ  उन्ही  वादियों   से  फिर  कभी  

जो  हसीं  लगती  थी  कल   तक   वो अब  दिल  को  भाती   नही

 वो  सांसों  कि  गर्मियां  जेहन  मै  भी  हैं  अब  भी बसीं  

पर  अब  क्या  हुआ  जो  धडकने   फिर  से  तेज  हो  जाती  नही

अब  गेसुयों  कि  खुशबू  ख्यालों   मै   तो  हैं   मगर  

क्या  हुआ  जो  अब  वो  गेसू  खुल  के  बिखर    जाती  नही  

वो  छेड़  जाना  नजरों  से  सबसे  नजर  बचा  कर  के  

क्या  हुआ   उन  नजरों  को  , कि  अब   वो  शोखियाँ  आती  नही  

वो  अपलक  देखना  तेरा जब  भी  गुजरना  पास  से  

और  वो  सहेलियों  का  कहना  कि  एक  तू  है  कि  शर्माती  नही  

सबका  पूछना  कि  चेहरे  पे  तो   दीखती  हैं  शुर्खियाँ  तेरे  

और  एक  तू  है  कि हम से कुछ  बताती  नही

अब  भी  करती  हैं  परेशां   बस  वही  मुहब्बत   कि   बातें  

कोशिश  करता  हूँ  बहुत  पर  वो  सरगोशियाँ  भूल  पाती  नही    

भूल  के  ना  भूल  पाया  हूँ  मै  उस  भूल  को  

जीने  का  दिल  करता  नही  पर  मौत  है  कि  आती  नही ,





फूल गुलशन का

4 11 2009

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मै  एक  फूल  हूँ  गुलशन  का,
 जिसे  सब   लोग  सजा  देते  हैं,
हम  खुद   ही   टूट  कर  भी,  
दूसरो  को  मजा  देते  हैं,
हमे  तोड़  कर  लोग  गले  का  हर  बना  लेते  हैं,  
हमे  तोड़ते  हैं  और  निशान  ए  प्यार  बना  देते  हैं,
हम  ही  हैं  जो  कभी  कभी  गुलशन,
 भी  महका  देते  हैं,
लोग  कभी  कभी  हमे  यादों  मै  बसा  लेते  हैं ,
जरा  सुनो  मुझे  तोड़   लेने  वाले,  
रहम  करना  मेरे  उस   माली  पर  भी  ,
जो  हमे   जिन्दगी  देने  के  लिए ,
 अपने  उँगलियों  मै   कांटे  चुभा  लेते  हैं ,
मुझे  शिकायत  है  यह  हर  आने  वाले  से ,
 गुलशन   से  तोड़  गुलदस्ते  क्यूँ  बना  देते   हैं,

 आता  है  जब  घर  मै  कोई  मेहमान  ,
वे  गुलदस्ते  थमा  देते  हैं,

 पूछता  हूँ  मै  जाते  हुए  उस  मेहमान  से ,
बताइए  कि  मेरी  खता  क्या  है  ??
जाते  हुए  किसी  के  घर  से 
 क्यूँ  हम  फूलों  को  ही  पैरों  से  दबा  देते  हैं ???




कल और आज

4 11 2009

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कल  मै  सब के   पास  जाता  था   
 कोई  तो   अपना   बनाएगा  मुझे,  
यही  सोच   साथ  साथ  जाता  था,
जब  होती  थी  नही  फूलों  से  दोस्ती,  
तब  मै  काटों  के  पास  जाता  था,  
कल  मै  अरमानो   की  सीढ़ी  बनाता  था,  
पर  ऍन  मौके  पर  वो  भी  टूट  जाता  था,  
कल  मै  गिरे  हुए  को   उठाता  था,
 पर   वह  भी  मुझे  बैशाखी  थमता  था,
दूसरो    को  हँसाने  के   लिए,    
कल  मै  अपना  गम  छिपाता   था,   
इस  तरह    से   मै  अपना  कल  बिताता  था,  

पर  आज

मै  जब  जब   अकेला  रहना  चाहता  हूँ,  
 ना  जाने    सब  लोग  क्यूँ  मेरे  पास  आते  हैं, 
 मै  जब  कहता  मेरा  अपना  नही  कोई,
आखिर  क्यूँ  सब  लोग  मुझे  अपना  बनाते  हैं,
मैंने  है  कर  ली  आज  काटों  से  दोस्ती , 
तब  फुल  भी  टूटकर  क़दमों  मै   बिखर  जाते  हैं,
आज  मै  गिरना  चाहता  हूँ   फिर   सीढियों  से
तो  सब  लोग  मुझे  क्यूँ  अपने  पलकों  पे  बिठाते  हैं,
आज  चाहता  हूँ  कि  मै  खूब  रोऊँ, 
 हँसाने  के  लिए  फिर  क्यूँ  मुझे  गुदगुदाते  हैं,

 आज   जब   चाहता  हूँ  मै   बैशाखी  का  सहारा,  
तो   फिर  लोग  क्यूँ  मेरे  कंधे  से  कन्धा  मिलते  हैं
पर  एक   बात  है  , जो  कल  यादों   मै  आते  थे   
 वे  कल   भी  रुलाते  थे  और  अब  भी   रुलाते  हैं
पर  अकसर  होता     है 
मेरे  साथ  ही  ऐसा  क्यूँ?

 
जब  मै  अपना  आज  बिताता  हूँ,
  तो  लोग  अपना  कल  बिताते  हैं .





चिराग एक कब्र का

4 11 2009

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मै  आज  खडा  हूँ  जिस  कब्र  पर  
वह   कब्र  किसी    देश  के   सिपाही  का  है  
यह  एक  तोहफा  गैरों  के  तबाही  का  है
यह  जो  चिराग  इसके  पास  जल  रहा  है
 आते  जाते  हर  रूह  को   ये  बता  रहा  है  
यह  मजार  भी  किसी  महबूब  के  माही    का  है

 कह  रहा   है  यह  पास  आने  वाले    हर  राहगीर  से
कभी  भी  मेरी  याद  मै  आंसू  ना  बहाना  
गर  हो  सके  तो  देश  के  वास्ते  एक  कतरा  खून  बहा   जाना
कहता  है  इससे  बढ़  के   क्या  कुछ  और  होता  है
 अरे  हर   आदमी  ही  तो  देश  का  सिरमौर  होता  है




मै क्यूँ किसी को अपना नही बनाता ??

23 10 2009

tropical_sunsetमै  किसी  को   कभी  अपना  नही  बनाता
सब  पूछते   हैं  पर  मै  बता  नही  पता

सबसे  पहले  मैने  मिटटी  का  घरोंदा  बनाया  था
उसे  मैने  बगीचे  के  फूलों  से  सजाया  था 
तभी  कुछ  देर  बाद  ही  बरसात  हो  गयी  थी 
मेरी  मिटटी  की  गुडिया  बर्बाद  हो  गयी  थी  

फिर  मैने  लकडी  का  एक  मंदिर  बनाया  था 
मैने  उसमे  घी  का  दीपक  जलाया  था  
तभी  हवा  के  झोंके  से  उसमे  आग  लग  गयी  थी
मेरे   अरमानो  की  मंदिर   जलकर  खाक  हो   गयी  थी 

पर  फिर  भी  मैने  कभी  भी  हार  नही   मानी
इस  बार  मैने  एक  बडी  बात  ठान  ली 

मैने  सफ़र  के  एक  राहगीर  को  साथी  बनाया 
उसने  मुझे  अपनी  बारात  में  बुलाया  
वहा  पहुंच  कर  मै  फिर  हाथ  मल  रहा  था 
बारात  के  जगह  पर   उसका  जनाजा  निकल  रहा  था  

क्या  आप  फिर  भी  कहेंगे  कि  मुझे  अपना  बनाइए
मै  कहता  हूँ  इसलिए  मुझे  अकेला  छोड़  जाइये  
मै  इसलिए  किसी  को  कभी  अपना  नही  बनाता 
और  सफ़र  पर  मै  अपने  अकेला  ही  निकल  जाता  ——————–





दुश्मन की तरह

21 10 2009

katilहम  एक   फूल  हैं   नाज  ऐ गुलशन   की  तरह    

जो  महकते  हैं  आँगन  को    भी  उपवन  की  तरह

कहते  हैं  सब  की  मै  तेरा  होता  ही   कौन   हूँ
 
हम  बसाते  हैं  उन्हें   दिल  मै  धड़कन  की  तरह 

जब  आता  है  कोई  , तो  बहार   आ  जाती  है  जिन्दगी  मै 

पर   बीत  जाती  है  वह  भी  बचपन  की  तरह 
किसी  ने  फेंका  था  लकडी  समझ  कर  सड़कों  पर 

किस  ने  उठा   माथे  से   लगाया   था   चन्दन  की  तरह

कांपते  देखा  किसी   ने  मुझे  तो  उढ़ाया     चादर 

कोई  आया  तो  उसे  लपेट  गया  कफ़न  की  तरह 
किसी  ने  पूछा  कालिख  क्यूँ  लगाया   है  अपने  चेहरे   पर 

मेने  तो  आँखों  मै  लगाया  था   उसे  अंजन  की  तरह 

लोग  कहते  हैं  की  हमे  आदमी  की  पहचान  है  नही 

हम  हर  चेहरे  को  देखते  हैं   दर्पण  की  तरह 

हम  से    तो  ना   जाने  लोग   क्यूँ  लड़ते  हैं  रोज 

हम  भूल  जाते     हैं   छोटी  सी  अनबन    की  तरह 

 

जरा  मेरे  सीने  पर  निशान  ‘ ऐ   खंजर   तो   देखो 
 
ये  आपसे  पूछती  हैं  शायद   ‘

उस दिन  क्यूँ  मारा  था  आपने  राजीव  को  दुश्मन  की  तरह …  
 




एहसास

13 10 2009

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पता  नही  अब  भी उससे  क्यूँ  डरता  हूँ  मै
जब  दूर  नजर  आती  है  आहें  भरता  हूँ  मै 
पास  अगर  आ  जाती  , कितना  अच्छा  होता 
पास  आ  जाती  है जब  तो  डरता  हूँ  मै 
 
हर  रात  गुजरती   पल  पल  अब   तो  तन्हाई  में
ख्वाबों  में  उसके , इंकार  और  रुसवाई  में 
पल  पल  अकसर  महसूस  उसे    करता   हूँ  मे  
उसका  अक्स  बना  बाँहों  में  भरता  हूँ  मे
 
हर  साँस  में  पास  पास  वो  लगती  है 
कोमलता  का  एक  एहसास   वो  लगती  है 
यूँ  तो  अकसर  जेहन  में  बहुत  तस्वीरें  हैं
पर  उनमे  सबसे  खास  वो  लगती  है 
 
 
छू  देती  गर  होठों  से  , कितना   अच्छा  होता 
बस  यही  सोच  होठों  को   भींचा  करता  हूँ   मे
पौध  कभी  तो  वृक्ष    बनेगा  यही  सोच  कर 
नेह  और  स्नेह  से  सींचा  करता  हूँ मै
 
अकसर  जब   मेरे  पास  वो   आती  है 
दुपट्टे  से  तेज  धडकनों  को  अपने  छुपाती   है 
कमनीय  काया  अकसर  जब  बल  खाती   है 
नैनों  को  झुका  कर  के  शर्माती   है  
 
हालात   इस  कदर  हुयें  हैं  अब  आशनाई  में
बदन  रह  रह  के  कांप   जाता  है  रजाई  में 
तकिया  सीने  से  लगा  फिर  होठों  से  छुआ  करता  हूँ 
अक्सर  उस  मखमली  काया  को  बाँहों  में  भरता  हूँ  
 
वह  हकीकत  में   नही  तो  ख्वाबों  में  सांसों  के  पास  तो  है 
उसके  बदन  से  उठाते  हर  उफान   का  मुझे  एहसास  तो  है 
 
 
वो  कुछ   नही  कहती  है  मुझे 
अठखेलियाँ  साथ   उसके  कितनी  भी  करता  हूँ  मै 
पर  कर  नही  पाया  बयाँ   दिल  के  अरमान  को 
क्यूंकि  अरमानो  के  टूटने  से  बहुत  डरता  हूँ  मै .  
 





ए ताजमहल पे आने वालों

14 06 2009

taj-mahalए ताजमहल पे आने वालों ,
जरा हमे याद तुम कर लेते ,
गर हाथ हमारे होते तो ,
महबूब को बाँहों में भर लेते ,
माना शहंशाह था वो जो ,
वो इश्क किसी से करता था ,
अपनी बेगम कि चाहत में ,
वो दिलो जान से मरता था,
हम अपनी मुहब्बत के खातिर ,
अपनी जान लुटा देते ,
गर हात हमारे होते तो ,
रोज दो चार ताज बना देते,
पर शहंशाह था वो जो,
शायद हमारे इश्क से डरता था,
हर दिल रखता है एक मुमताज़ यहाँ ,
फिर क्यूँ वो बेवजह इश्क का दम भरता था,
दामल को छूने कि ख्वाहिस थी जिन हाथों को ,
उन हाथों को कटवा डाला ,
उसने ताज बना कर के ,
कितनों के इश्क का मजाक उड़ा डाला ,
गर आज होते हम इस दुनिया में,
तो दुनिया को हम ये दिखा देते ,
इश्क में ताज बनवाना जरूरी नही ,
सारी दुनिया को ये सिखा देते ,
गर हाथ हमारे होते तो रोज दो- चार ताज बना देते !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!





अभी नही पर कभी तु मुझ पर मरती थी की नही,

14 06 2009

fastest-how-to-stop-a-break-up-advicesअभी नही पर कभी तु मुझ पर मरती थी की नही,
दिल में मेरा नाम ले कर के आन्हे भरती थी की नही,
माना आज बेगानी बन गयी है तु,
एक अजनबी के दिल की रानी बन गयी है तु
ये बता दे प्यार तु मुझसे कभी करती थी की नही
होंठो पे ले के नाम , कभी आन्हे तु भी भरती थी की नही
याद है मुझे ,
सीने से लगा के किताबों को जब तु कॉलेज आती थी,
सीने से लगने का ख्वाब मेरा , तु तोड जाती थी,
तुझे अकेले देख मेरा दिल पता नही क्यूँ मचलता था,
तू मेरी बाँहों में आने को कभी मचलती थी की कि नही
याद मुझे हे पहली बार मैने तुझे आँखों आँखों में छेड़ा था
गुस्से में तुने तब आँखों को तरेरा था ,
तब से मैं तुझसे बातें करने से डरता था
तू बता की कभी तू मुझसे डरती थी की नही
होंठो पे लेके नाम मेरा तू आंहे भरती थी नही,
ये बता दे तू प्यार मुझसे करती थी की नही .
याद है उस दिन तेरा छिपकर नजर मिला जाना
आँखों आँखों में कुछ कह जाना , और कह कर के फिर शर्माना ,
ये बता की उस वक्त तू मुझसे शर्माती थी की नही.
दुपट्टे का कोना होंठो से दबाती थी की नही ..
में तकिया बाँहों में ले कर रात रात भर जगता था
तू बता कि कभी मुझे तू ख्वाबों में लाती थी कि नही
कहती थी कि “राजीव” कि में दुनिया वालों से डरती हूँ.
अब बता कि तू उसके बाद किसी को बाँहों में भरती थी कि नही, .
.अभी नही पर कभी तु मुझ पर मरती थी की नही,
दिल में मेरा नाम ले कर के आन्हे भरती थी की नही,

 

breakup





मेरा बचपन लौटा दे

14 06 2009

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लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
खुशियों का वो छोटा आँगन , वो प्रेम का उपवन लौटा दे .
लौटाना हे आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
हर दिन होली हर रात दिवाली , दिन वो बचपन लौटा दे.
याद है मुझे ,
दादा जी के साथ बगीचे में वो जाना ,
पेड़ों के झुरमुट में जाकर छिप जाना ,
दादा जी का मुझको अपने पास बुलाना ,
और मेरा उनके अचकन में जा कर छिप जाना ,
लौटाना है आज मुझे तो दादा जी का वो अचकन लौटा दे ,
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
ख्वाबों का संसार मुझे कोई लौटा दे ,
माँ कि थप्पड़ का प्यार मुझे कोई लौटा दे ,
पहली बार देखा था, जिसे चौबारे पर ,
आज वो परी अनजान मुझे कोई लौटा दे
उसकी शर्म से लाल गाल ,और झुकी हुई पलकें ,
अब भी करती परेशान मुझे कोई लौटा दे ,
पहली बार जवानी को देखा था मेने जिस दरपन में ,
हो सके तो एक बार वही दरपन मुझको लौटा दे ,
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,
चौबारे का निश्छल प्यार और वो प्रेम का उपवन लौटा दे
लौटाना है आज मुझे तो मेरा बचपन लौटा दे ,





तुझे मै क्या लिखूँ

14 06 2009

सोचा मैंने की तेरे होठो पे एक गजल लिखूं
कोई हसींन तो कोई नाजनीन कहे ,
तुम्हे देखु तो लगे की तुम्हे खिलता हुआ कमल लिखु ,
सोचता हू तुझे मैं बया करू कैसे ,
बेदाग हसीं को चाँद मैं कहू कैसे
यू तो जिन्दगी बिताता हूँ तेरे ख्यालो में
अगर खुदा पूछे तो जिन्दगी को भी मैं एक पल लिखू
हर कोई तुम्हारे आने की आहट का इंतजार करे
तुम इंकार करो पर वो बार बार इजहार करे
चाहत तो हम भी रखते हैं आप के दीदार ए नूर का
इन्सान हैं पर आरजू रखते हैं जन्नत ए हूर का
सोचता हू की दिल की आवाज सुनाऊ कैसे
अपनी जबान को मूहब्बत का साज बनाऊ कैसे
इसलिए सोचा की तेरे हुस्न पर ही कोई गीत या गजल लिखूँ,
और उस गजल को ही अपने चाहत का ताजमहल लिखूं





ए ताजमहल पे आने वालों

14 06 2009

ए ताजमहल पे आने वालों ,
जरा हमे याद तुम कर लेते ,
गर हाथ हमारे होते तो ,
महबूब को बाँहों में भर लेते ,
माना शहंशाह था वो जो ,
वो इश्क किसी से करता था ,
अपनी बेगम कि चाहत में ,
वो दिलो जान से मरता था,
हम अपनी मुहब्बत के खातिर ,
अपनी जान लुटा देते ,
गर हात हमारे होते तो ,
रोज दो चार ताज बना देते,
पर शहंशाह था वो जो,
शायद हमारे इश्क से डरता था,
हर दिल रखता है एक मुमताज़ यहाँ ,
फिर क्यूँ वो बेवजह इश्क का दम भरता था,
दामल को छूने कि ख्वाहिस थी जिन हाथों को ,
उन हाथों को कटवा डाला ,
उसने ताज बना कर के ,
कितनों के इश्क का मजाक उड़ा डाला ,
गर आज होते हम इस दुनिया में,
तो दुनिया को हम ये दिखा देते ,
इश्क में ताज बनवाना जरूरी नही ,
सारी दुनिया को ये सिखा देते ,
गर हाथ हमारे होते तो रोज दो- चार ताज बना देते !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!





ये इश्क मुहब्बत प्यार की बातें

14 06 2009

ये इश्क मुहब्बत प्यार कि बातें ,
बाकी हैं बेकार कि बातें ,
कल तक मै ये कहता था .
यादों में खोया रहता था,
.
अब भी खोया रहता हूँ ,
सोकर भी जगा मैं रहता हूँ ,
जगकर भी सोया रहता हूँ ,
अब भी करती परेशान मुझे ,
पता नही क्यूँ प्यार कि बातें .
.
वो पहली बार नजरों का मिलना,
वो पहली बार इजहार कि बातें ,
wo नजरों से इकरार कि बातें ,
और होठों से इनकार कि बातें ,
.
अब भी याद जब उसे करता हूँ ,
तकिया बाँहों में भरता हूँ ,
कल दूर हुआ तो दिल रोया था ,
अब पास जाने से डरता हूँ
.
फिर भी करती परेशान मुझे ,
उसके आने के इन्तजार कि बातें ,
वो कैंटीन के कोने में बैठ ,
करना, प्यार और मनुहार कि बातें ,
.
जब इश्क ने बहुत सताया था
तब दिल को बहुत समझाया था
दिल को करने के लिए हल्का ,
तब माँ बाबूजी को बताया था ,
.
दिन याद है मुझे वो अब भी ,
वो बाबूजी की डांट फटकार कि बातें ,
याद है मेरा वो चुप रहना ,
और वो माँ-बाबूजी का कहना,
कि ये इश्क मुह्हबत प्यार कि बातें ,
ये सब हैं बेकार कि बातें ….
.
पर जब इश्क कोई फ़रमाता है ,
तो इश्क खुदा हो जाता है ,
दुनिया कि फिक्र को छोड़ ,
तब वो अपने में खो जाता है,
.
पर मै तब बहुत रोया था ,
उस रात मैं नही सोया था ,
भूल नही पाता है कोई ,
वो पल और वो हसीं मुलाकातें ,
वक़्त कि राहों में गुम हो गयी ,
वो हँसते दिन वो चांदनी रातें ,
.
अब पता नही क्यूँ डरता हूँ ,
मैं इश्क के किसी तराने से
ये इश्क सिर्फ एक धोखा है ,
बस यही कहता हूँ जमाने se ,
.
jo दूर है इससे, वो पछताये ,
जो पास इसके, वो रोता है ,
कुछ खोने वाला कुछ पा बैठा ,
कुछ पाने वाला कुछ खोता है
.
इसलिए कहता है “राजीव ”
कि तुम रोक लो अपनी जजबातें,
ये इश्क मुहब्बत प्यार कि बातें ,
ये बस हैं बेकार कि बातें
ये इश्क मुहब्बत प्यार कि बातें ,
ये हैं बस बेकार कि बातें !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!





Some Lines close to my heart

14 06 2009

हमारे पास ही था दुनिया का अनमोल रतन
हम अनजान थे इससे नही थे वाकिफ
पर देखा जब रोज दिलों को दफ़न होते यहाँ
सोचता हूँ इतनी गिरी चीज भी नही है दुनिया मे इश्क के माफिक
______________________________________

जब वे साथ बुलाते थे उनकी नजरें नुरानी थी
जब फेरा था नजरों को तो नजरो में ना पानी थी
आज उन्होंने कहा नही फिर भी जाने क्या कहानी थी
किसी ने छुआ ना था गालों को मेरे ,
फिर भी तमाचे की निशानी थी
_____________________________________

मै जानता हूँ की जा रहे हो दूर हमसे
गर हो सके तो कभी मेरे कब्र को जाती डगर से आ जाना
मै तेरा चेहरा जीते जी ना देख पाउँगा अब
कबर को ही मेरे, अपना हँसता हुआ चेहरा दिखा जाना
____________________________________

कल सब से पूछा था मैंने अख़बारों में देकर के इश्तिहार
कोई इस दिल को खरीदे या कोई देदे इसे प्यार ,
और आज आया भी तो मिलने तू ऐसे समय में यार
जब दिल टूटकर बिखर गया और जिन्दगी बिक गयी उधार
___________________________________

ये दिल रोया था उस दिन बहुत
जब तुने मेरा नाम दिल से मिटाया था
कही सुख ना गये हो , मेरी आँखों से आंसू
शायद यही सोच आपने मेरे चेहरे से कफ़न हटाया था
____________________________________

जाने क्यूँ उस शहंशाह ने पत्थरों का महल बनवाया था
जुलम किया मुमताज पर उसके जनाजे को दफनाया था
मै अपने कब्र को भी ताजमहल कहल्वाऊंगा
छुपौंगा दिल मै तुझे और खुद दफ़न हो जाऊंगा
पर डरता हूँ
लोग कहेंगे की एक और शख्स दुनिया मे आया था
दर कर कबर में छिप गया और अपनी महबूबा को भी छिपाया था .
____________________________________

कल साथ किया इक अजनबी का
आज वही मेरा रहनुमा हो गया
जिस पत्थर पे सर रख रोया था कल
आज उस पत्थर को ही खुद पर गुमान हो गया
____________________________________





महिला सशक्तिकरण

14 06 2009

आज शहर के चौराहे पर
एक सभा हो रही थी
इस सभा का सञ्चालन
एक महिला कर रही थी

उसने कहा सुनिए हमने आज आम सहमति है बनाई
महिलाओं को सशक्त बनाने की आज है जरूरत आई ,
फिर उन्होंने एक सज्जन को पुकारा
जिन्होंने वहा बैठे सरे श्रोताओं को ललकारा
उन्होंने कहा,
हमें हर साल
महिला सशक्तिकरण वर्ष मनाना चाहिए
आज की नारी को उसका हक़ दिलाना चाहिए
तभी किसी श्रोता ने कहा
जरा मेरे प्रश्न का जवाब दे जाइये
एक बार जरा मुझे भी ये बताइए
कल रात को आपने कौन सा पर्व मनाया था ?
क्यूँ आप सब ने मिल कर अपनी बहू को जलाया था ?





कौन भिखारी ?

14 06 2009

मैंने  देखा ,
 वो  कुछ  मांग  रही  थी
शायद वह  कुछ  मांग  ही  रही  थी  ,
मैले   कुचैले  पते   वसन   में 
लज्जा  से  मारे  सिकुडे  तन  में 
आंसू  भरे  हुए  नयन  में 
 वो  वुभुक्षा कि  आग  में  जल  रही  थी 
प्रकृति कि  क्रूरता मे  पल  रही  थी   
आदमियत का  माखौल उडाते  हुए
खुद  को  जानवर में  बदल  रही  थी 
इंसानियत को  जानवर  में  बदल  रही  थी 
इंसानियत  को  शायद यही  बात  खल  रही  थी

अपने  मैले  पते  वसन  से 
अपने  तन  को   ढँक  रही  थी
पेट  के  खातिर ही  सही 
 हाथ  सबके  सामने  पटक  रही  थी  .

अदम्य  क्रूरता  की  प्रतीक  थी  नारी 
दुसहासी  थी  या   थी भूख  की  मारी 
लोग  कह   रहे  थे  उससे 
दूर  हटो  तुम  , अरे  भिखारी   !

दूसरी  ओर  मैंने  जो  देखा 

समाज  भी  भूखा  ही  था 
पेट  का ??
 नही  नही वासना  का   
वह  मांग  रहा  था  वासना  की  भीख 

समाज  की  आँखों में  दया  भी  ना  थी 
लोक  लाज  और  ह्या  भी  ना  थी 
वह  चला   रहा  था   फब्तियों  का  तीर 
जो  बढा  रहा  था    कलेजे का  पीर

वह  हंस  रहा  था 
दुसरे  की  बेबसी  पर 
दुसरे  की  तड़प  पर 
और  शायद 
अपनी  असमर्थता   और कायरता पर भी ,

आज मै सोचता  हूँ
क्या था ? मै उस दिन
 उसकी सहायता  का अधिकारी    ?
कौन था भिखारी ?
वह  समाज   या  वह  बेबस  नारी  ???





नजर

14 06 2009

नजर कि नजर में जो आते हैं
लाखों में एक वे ही नजर आते हैं
लगी है यह भीड़ नजर कि मगर
एक ही नज़ारे बार बार नजर आते हैं ,
बेठे थे हम कि मिल जाये नजर एक बार
बार बार वे नजर से गुजर जाते हैं ,

देखते हैं यह हम नजारे हजार
सब नज़ारे नजर में ही रह जाते हैं
कह नही पते अपनी दास्ताँ ऐ जिगर
होने वाला नही है उनपे कोई असर
जिगर यह टुकडों में बिखर जाते हैं
साकी ना उठाना नजर बार बार
रोज लाखों के नजर यह उतर जाते हैं

खो ना जाये नजर इस नजर कि भीड़ में
चली जाये ना मैना वापस नीद में
एक नजर ने किया लाखों को घायल मगर
राह चलते उठती थी फिर भी लाखो नजर
लाज से नीची होती थी उनकी नजर

मेरी तबाही का सबब बनी उनकी नजर
तबाही का ना हुआ उनपे कोई असर
नजरें तरसी थी दो आंसू के खातिर मगर
उठ ही ना पाई मुझ पर उनकी नजर

एक तरफ था मेरे जनाजे का मंजर
उनके घर हो रहा था शहनाई का असर
छोड़ दुनिया को मई जा रहा था मगर
जा रही थी वो छोड़ अपने बाबुल का घर





Hello world!

1 06 2009

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